संपादकीय: सवा दो करोड़ देशवासी नहीं रहे फिर भी हम मुर्दा शांति से क्यों भरे हैं?
साल 1991 से 2001 के बीच असमिया बोलने वाले लोगों की संख्या 58 फीसदी से कम होकर 48 प्रतिशत रह गयी. बंगाली बोलने वाले लोगों की संख्या 21 फीसदी से बढ़कर 28 फीसदी हो गयी.
साल 1991 से 2001 के बीच असमिया बोलने वाले लोगों की संख्या 58 फीसदी से कम होकर 48 प्रतिशत रह गयी. बंगाली बोलने वाले लोगों की संख्या 21 फीसदी से बढ़कर 28 फीसदी हो गयी.
कल (15 जनवरी को) मायावती का जन्मदिन था. मायावती एक दौर में दलित राजनीति की प्रमुख आवाज रही हैं पर…
अमेरिकन अख़बारों में एक बेहतरीन चलन है. वह उम्मीदवार द्वारा चुनाव से पहले किये जाने वाले दावों/वादों की कठोर समीक्षा…
सुप्रीम कोर्ट के जजों द्वारा की गयी प्रेस कॉन्फ्रेंस ऐतिहासिक और अप्रत्याशित थी. हालांकि इसमें ऐसा कोई खुलासा नहीं हुआ,…
हम जिन ढांचों में बंधकर इस दुनिया को चलाने का काम करते हैं, उन ढांचों की वजह से यह केवल…
विचारधारात्मक मतभेदों को भुलाते हुये महाराष्ट्र की सभी लेबर यूनियन साथ आ गई हैं. ये महाराष्ट्र के श्रम विभाग के…
आजकल इलेक्ट्रॉनिक और वेब मीडिया की तरह प्रिंट की पत्रकारिता भी बेहद जल्दबाजी में की जा रही है. मीडिया जगत…
अरविंद केजरीवाल ने अरूणा राय की बात नहीं मानी। योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण समेत बहुतों ने उनकी बात नहीं…
1. ‘समाज सिर्फ सिक्युरिटी गार्ड्स और पुलिस के भरोसे नहीं चल सकता, आपसी भागीदारी भी बढ़ानी होती है.’ यह लेख…
रोहित वेमुला की मां ने कहा कि ‘रोहित की मौत देश के लिए दलितों के साथ एकजुटता से खड़े होने…