क्या अरविंद केजरीवाल के अंदर शुरुआत से ही सत्ता के लिये किसी भी समझौते की प्रवृत्ति रही है?
अरविंद केजरीवाल ने अरूणा राय की बात नहीं मानी। योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण समेत बहुतों ने उनकी बात नहीं मानी क्योंकि उन्हें लगा कि सोशल मीडिया के माध्यम से युवाओं का जो विशाल समर्थन मिल रहा है उसे सुव्यवस्थित आंदोलनों में बदलकर और उसका सही राजनीतिक प्रबंधन कर वैकल्पिक राजनीति खड़ा करने का प्रयोग किया जा सकता है। यह खतरा मोल लिया जा सकता है।
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अरविंद केजरीवाल को अरूणा राय ने कहा था कि संसदीय राजनीति में जाओ ही मत। अभी वह वक्त नहीं आया कि संसदीय राजनीति काला धन के सहयोग के बिना की जा सके। अभी वैकल्पिक राजनीतिक संस्कृति का निर्माण सामाजिक कार्य के धरातल पर ही आगे बढ़ाने का वक्त है। अभी वैकल्पिक राजनीतिक संस्कृति के लिए सामाजिक कार्य को एक स्वायत्त शक्ति बनाने का वक्त है जिससे देश भर की सामाजिक कार्यकर्ताओं की जमात संसदीय राजनीति पर एक सक्षम दबाव समूह के रूप में काम कर सके।

अरुणा रॉय
अरविंद केजरीवाल ने अरूणा राय की बात नहीं मानी। योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण समेत बहुतों ने उनकी बात नहीं मानी क्योंकि उन्हें लगा कि सोशल मीडिया के माध्यम से युवाओं का जो विशाल समर्थन मिल रहा है उसे सुव्यवस्थित आंदोलनों में बदलकर और उसका सही राजनीतिक प्रबंधन कर वैकल्पिक राजनीति खड़ा करने का प्रयोग किया जा सकता है। यह खतरा मोल लिया जा सकता है।
अरविंद केजरीवाल को जानने वाले बहुत लोगों का यह कहना है कि वह चतुर सुजान व्यक्ति हैं जिसे संजय सिंह और कुमार विश्वास जैसे ‘मोबिलाइजरों’ का साथ मिलने पर बेहतर राजनीतिक कैरियर का भरोसा हो चला था। योगेंद्र यादव का मानना था कि राजनीति में अधिकांश समस्याओं की जड़ राजनीति की गंदगी है। इसलिए बिना राजनीति बदले आधारभूत परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। केवल सामजिक स्तर पर काम करने से राजनीतिक संस्कृति बदलना असम्भव है। राजनीतिक संस्कृति बदलने के लिए राजनीति करनी जरूरी है। राजनीति संस्कृति बदलने के लिए बहुत जरूरी है की हम हर चुनौतियों पर जनता के सामने ईमानदार दिखें। इसमें सबसे मुश्किल चुनौती थी पॉलिटिकल फंडिंग की। पॉलिटिकल फंडिंग और टिकट का बंटवारा करने की व्यवस्था में पूरी पारदर्शिता- लोकतांत्रिकता बरतने और बनाए रखने से जनता के विश्वास को दूर तक लेकर चला जा सकता है और कांग्रेस और बीजेपी को टक्कर दी जा सकती है।
अरविंद केजरीवाल ने योगेंद्र यादव की बात नहीं मानी। पारदर्शी और लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित आम आदमी के बीच से नयी प्रतिभाओं को चुनकर राजनीति में जगह देने की जिस वैकल्पिक राजनीति का सपना देखा गया था उसे अरविंद केजरीवाल की हरकतों से धक्का लगता चला जा रहा है। निश्चित ही अरविंद केजरीवाल अपने आप को 2024 में प्रधानमंत्री पद का प्रबल दावेदार या बीजेपी विरोधी राजनीति के केंद्र में सबसे मजबूत नेता के रूप में देख रहे हैं।
अंदर खाने से खिचड़ी पकाने की राजनीति में वह अपने आप को धुरंधर बनाते जा रहे हैं। स्वयं की जाति का स्वाभाविक लाभ का भी वह उपयोग कर रहे हैं, उनकी जाति के संगठनों के बैनर पोस्टरों में उन्हें अपना वीर सपूत दिखाया जाता है, जिसका केजरीवाल ने विरोध कभी नहीं किया। राज्य सभा का टिकट पार्टी को 2024 तक के लिए मजबूत रखने के लिए सर्वव्यापी सर्वग्रासी काला धन और बनिया पूंजी को खुश रखने के लिए बेचा गया है।
देश भर में आरटीआई एक्टिविज्म और छोटे-बड़े सामाजिक आंदोलनों के माध्यम से जो सामाजिक कार्यकर्ताओं की जो एक नव-सृजित जमात है अरविंद केजरीवाल ने उसकी विश्वसनीयता को बहुत चोट पहुंचायी है। अरविंद केजरीवाल ने संसदीय राजनीति के डोमेन में वैकल्पिक राजनीति के प्रयोग और संभावना को बहुत चोट पहुंचायी है। वह कांग्रेस जैसा बनकर और संभवत: कांग्रेस के साथ सीटों पर समझौता कर 2024 में स्वयं के लिए एक बड़ा राजनीतिक कैरियर बनाएंगे।
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